तुम्हारी आंँखों में (कविता )प्रतियोगिता हेतु22-Apr-2024
तुम्हारी आंँखों में(ग़ज़ल) प्रतियोगिता हेतु
तुम्हारी आंँखों में क्यों हम अपनी अहमियत खोजें, जिन आंँखों में सदा ही हम खटकते ही रहे हैं। तुमने ही मेरी ज़िन्दगी वीरान है किया, तेरी रुसवाईयांँ से हम सदा दहकते ही रहे हैं। मेरे अंदर बसे सुंदर एहसास को तूने ख़त्म है किया, हम तो वो थे जो कांँटों में भी चहकते ही रहे हैं। ज़िंदगी ने कांँटे दिए उसका गम नहीं किये, उन कांँटों में गुलाबों सा महकते ही रहे हैं। तेरे मोहब्बत की आस में मैंने ख़ुद को जला डाला, तुम जैसे सदा ही मुझे झटकते रहे हैं। कोई पहचान ही न पाया मेरे दर्दे जिगर को, जब भी अवसर मिला उसको पटकते ही रहे हैं। कभी देखे तो होते मेरे जज़्बात को पढ़कर, पर आप तो मेरे घावों पर नमक बुरकते ही रहे हैं। मन के आईने में सच्ची मोहब्बत खोजती रही, जब भी चाही कहीं और वो बहकते ही रहे हैं। आपको पाने से अधिक खोने का डर था सदा मुझे, कुछ न पाकर भी हम सदा चहकते ही रहे हैं। यदि तुम एक बार कहते तेरी याद आ रही, इन शब्दों के लिए आज तक हम तड़पते ही रहे हैं।
साधना शाही, वाराणसी
Mohammed urooj khan
24-Apr-2024 05:39 PM
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